Bhaskar Anand
Sunday, September 15, 2019
"गाँव मे शहर"
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"मुझे पता था ऐसा होने वाला है। जीवन के अंतिम पड़ाव पे सबकुछ शान्त सा दिख रहा था। अभिनय के अंतिम चरण में समय का चक्र गतिमान लग रहा था, और...
Monday, April 1, 2019
"कलंक लिख कर मिटा रहा है"
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लेखनी के ज्वार में, जलता स्याही कलंक लिख कर मिटा रहा है तुक, छन्द से पड़े होकर के अर्थ काव्य को सजा रहा है छायावाद के सारगर्भित सजल कर...
Saturday, August 18, 2018
संवेदनाओं के स्वार्थ
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https://youtu.be/C3PzkRHz5X4
Tuesday, August 7, 2018
अंतरद्वंद
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"अंतरद्वंद" कहने की बारी मेरी थी अब सुनते ही तो बड़ा हुआ था मन के अंदर भी कुछ बातें यूँ ही दशकों से पड़ा हुआ था सोचा मैंन...
Sunday, June 3, 2018
"मायावी विश्व के चक्रव्यूह "
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दूर फैले, ख़ामोशी के शोर में फ़ैल जाती जब कोलाहल आहिस्ते यूँ, अतीत के अमर्त्य इस्थिरता से वर्तमान की स्व-व्यवस्थता से और भविस्य की गौण ज्...
Friday, April 6, 2018
माँ
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माँ क्या आप सच में ही, मुझ से चिढ़ तो नहीं गई थी ना मेरी बातें सुनके आप , अस्तब्ध तो नहीं पड़ी थी ना मैं यूँ सोचूँ की आप, फिर क्यूँ यूँ नारा...
Monday, April 2, 2018
संवाद 3 (माँ और मैं)
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माँ, आप कितनी इत्मीनान से सुना करती थी ना मुझे, जब भी कुछ लिख कर के आपको सुनाता, आप मानों मेरे शब्दों के बहाव में सफ़र किया करती थीं। आज जब आ...
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